Everyone...has an identity that must be respected...irrespective of stature, status, profession et al. U cant go around calling every little boy who serves you at tea stalls/ shops/anywhere for that matter..by the name of chotu..it doesn't take too much time and effort to ask someone's name..now does it!.....तेज़ आवाज़ में कहता हैं "ए छोटू! ज़रा दो चाय लाना"
मेरा नाम छोटू है, ये तुम्हे किसने कहा, पहले ये बताना
पिछले दस सालो से मै बबलू था, फिर शहर हुआ आना
कद तो तब कम ही था तोह सब ने शुरू कर दिया छोटू बुलाना
चाय की दुकान बना नया घर और चाय बनी मेरा पहला प्यार
मालिक ने किया छोटू बुलाना और बबलू बोल बोल मैं गया हार
"ए छोटू! तीन चाय टेबल चार पर, एकदम कड़क, ज़ोरदार"
चाय लेकर जाओ, तोह कस्टमर कहे "छोटू, कुछ खाने को भी ला यार"
"छोटू नहीं! बबलू! -बोलना चाहिए था पर बन के रहा ये एक काल्पनिक साज़
और "हाऊ सर, अभी हाज़िर है" बोली मेरी आदत से मजबूर आवाज़
शायद इसी नाम से जानते हैं मुझे अब सभी लोग पास और दूर दराज़
पांच पांच का हो गया हैं कद, पर लोग न आयेंगे बाज़
अब ठान लिया हैं की छोटू सुन कर भी अनसुना करूंगा
बबलू मेरी पहचान हैं, न खुद भूलूंगा न भूलने दूंगा
दुबारा छोटू कहा तोह...... "ए छोटू! दो चाय और टेबल तीन तोह पोछना"
"हाऊ सर, अभी हाज़िर हैं" -मेरी आदत ने फट से शुरू किया बोलना...
सुचिता

