'Maahi' ....is the love story of the wood and the fire...The wood burns to see the fire come alive and engage in a dance that'll last only as long as them...He's happy to see it light up even as he burns..only an end...in ashes and smoke..can separate them....
Following is the 'Hindi' version of 'Maahi' for all those who had problems reading 'Mukhtalif'
Below this, is the 'Urdu' version of 'Maahi' :)
माही
ऐसा रिश्ता है ये, कि दुनिया भी है हैरान
तेरी लपटो मे ही बसी है जाने क्यो मेरी जान
तेरे रौशन होने से ही खिल उठती है ये आऩखे
के कभी तेरी एक चिऩ्गारी तुझसे अलग होकर मेरी ओर झाके
तेरे नूर से ही है मेरा वजूद कि मुझे देख पाते है लोग
तेरे नाच से मै जलता ही नही, कुछ इस कदर है इस इष्क का रोग
सुनहरी ज़ुलफो को छूने को तरसता है, ये मन, ये प्यासी काया
इस जुनून का असर है ऐसा, कि दिल पर छाया है तेरा ही साया
कभी शरमाये हुए धीरे से बात करती हो मुझसे
कभी गुस्से की तेज़ गरम लपते बरसाती हो मुझपे
पर तेरे इष्क मे खोया मै तुझे देखता ही जाता हू
जलने के एहसास को महसूस किये बगैर मै जलता ही जाता हू
वो कहते है मुझसे कि ये इष्क नही है
सन्नाटा है जिसका अन्त, ये है वो आग
कोई उन्हे बताए कि हमने जल के देखा है
और बरसो की नीन्द आज खुली है, के आन्खे गयी है जाग
डरता हू के जाने कब वो पल आ जाये
की मै राख़ और तू धुआ बन उङ जाये
उस जुदाई को मेरी रूह ना सह पाएगी
इऩशाल्लाह तुझसे पहले मुझे ही मौत आएगी