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Wednesday, February 10, 2010


'Maahi' ....is the love story of the wood and the fire...The wood burns to see the fire come alive and engage in a dance that'll last only as long as them...He's happy to see it light up even as he burns..only an end...in ashes and smoke..can separate them....
Following is the 'Hindi' version of 'Maahi' for all those who had problems reading 'Mukhtalif'
Below this, is the 'Urdu' version of 'Maahi' :)

माही

ऐसा रिश्ता है ये, कि दुनिया भी है हैरान

तेरी लपटो मे ही बसी है जाने क्यो मेरी जान

तेरे रौशन होने से ही खिल उठती है ये आऩखे

के कभी तेरी एक चिऩ्गारी तुझसे अलग होकर मेरी ओर झाके

तेरे नूर से ही है मेरा वजूद कि मुझे देख पाते है लोग

तेरे नाच से मै जलता ही नही, कुछ इस कदर है इस इष्क का रोग

सुनहरी ज़ुलफो को छूने को तरसता है, ये मन, ये प्यासी काया

इस जुनून का असर है ऐसा, कि दिल पर छाया है तेरा ही साया

कभी शरमाये हुए धीरे से बात करती हो मुझसे

कभी गुस्से की तेज़ गरम लपते बरसाती हो मुझपे

पर तेरे इष्क मे खोया मै तुझे देखता ही जाता हू

जलने के एहसास को महसूस किये बगैर मै जलता ही जाता हू

वो कहते है मुझसे कि ये इष्क नही है

सन्नाटा है जिसका अन्त, ये है वो आग

कोई उन्हे बताए कि हमने जल के देखा है

और बरसो की नीन्द आज खुली है, के आन्खे गयी है जाग

डरता हू के जाने कब वो पल आ जाये

की मै राख़ और तू धुआ बन उङ जाये

उस जुदाई को मेरी रूह ना सह पाएगी

इऩशाल्लाह तुझसे पहले मुझे ही मौत आएगी

माह़ी
इस यकता तालुक को देख, आज आवाम में हैं हैरत
तेरी मशाल से ही बंधी हैं सासे, की तू हैं मेरी इबादत
खुश नुमः, इस मंज़र के खुमार में घर्क हैं कुछ इस क़दर यह आँखें
इस आस में, की एक मर्तबह कोई शरारह मुझे दूज़ दीदा नज़र बक्शे, ज़रा तोह झाके
तेरे सुर्ख नूर से हैं रोशन यह वजूद, पूरा जहाँ हैं इस बात का गवाह
खुश नुमः तेरे रक्स में जलन ही नहीं, की इस रोग को दुआ लगी, दवाः
ज़रीन जुल्फों के बोसे को तरसती हैं मेरी खुश्क काया
इस आपिश के इख्तियार में ज़र्रे ज़र्रे पे छाया बेखुदी का साया
जीनत–e-हया को कभी कर निसार, सरगोशी करती हो आहिस्ते से
कभी गैज़ की देहेक्ति शुआ-एन बरसाती हो गरज के
कुदरत की नायाब करामात, खुदा का हो तुम करम
फिर चाहे कोई मुझे काफ़िर कहे या तेरी ज़र्द बाहों को मेरा भरम
इस मुक़द्दस इतिहाद के खुमार में तहलील होके तुझे देखता जाता हूँ
जलन को महसूस किये बगैर, लम्हा लम्हा मैं जलता ही जाता हूँ
वाइज़ कहते हैं मुझसे यह इश्क नहीं हैं
संनात्ता हैं जिसका अंजाम, यह हैं वो आग
कोई उन्हें बताये, की हमने जल के देखा हैं
और ज़माने से सोयी यह बेनूर आँखें आज गयी हैं जग
डरता हूँ की जाने कब व्हो लमाह जाये
की मैं रख और तू धुआं बन उड़ जाए
इस आलेदः को ना मेरी रूह शे पायेगी
इन्श--अल्लाह, तुझसे पहले मुझे ही मौत आएगी

Monday, February 1, 2010


मुख्तलिफ

आज बद-इ-सबा ने मुह है मोड़ा‚ बाग़बान भी हुआ है बेगाना
बाइस जब पूछा मैने‚ तो कहता है की आलम का फरमान था मुझे भी निभाना
कल्ब की हर मशघूल थी ख़ालिस, तमऩना-इ-उड़ान जागी थी एक बार फिर
दम-साज़ थे सभी, इतिहाद कुछ ऐसा था कि खुदा भी था मुतासिर
पर फिरक़ाह फी बरपी एक ऐसी पाइऩदाह चिऩगारी
फना हुई मोहब्बत, किसी भी गैर की मौजूदगी बनी भारी
तसव्वुरी उड़ान की चाह मे, कभी तन्ग, कभी बाघी, कभी हुआ लाचार
पर मक्बूलियत ही है अब मुकद्दऱ, जब की लिहाज़ की हर सीमा हुई है पार
काबिल-ए-कबूल ना था दुनिया-ए-दस्तूर
ऱग पर था मुझे नाज़, रव्वैये मे था गुरूर
आफाक तक उड़ान की रखी थी ख्वाइश
पर बेरूनी रोख के नाम पे खूब हुई नुमाइश
किसी ने कावा कहा, किसी ने सियाही
मेरी बोली, मेरी उड़ान पर हर तरह से रोक लगाई
आबरू रिज़ी की शर्मिन्दगी का एहसास हुआ कुछ ऐसा गहरा
दर्द-ए-अफज़ाइश था इतना कि आइना भी पहचान ना पाया मेरा चहरा
आफताब-ए-नूर से आती थी शरम, फजर् का रहता मुझे इन्तज़ार
अफरोज़-ए-चिराग की पनाह मे छुपा, के अब वजूद भी था अध्यार
जाने क्यो उस चराग से कल्ब को थी एक अजीब सी चाह
शायद उसी के नूर से दमक उठे ये बेनूर आज़ूरदाह
इस बेगाने शहर की बेगान्गी अब बन गयी है मसला
के अब जन्नत और जहन्नुम मे कम हो रहा है फासला
आज बद-इ-सबा ने मुह है मोड़ा‚ बाघबान भी हुआ है बेगाना
बाइस जब पूछा मैने‚ तो कहता है की आलम का फरमान था मुझे भी निभाना


Word Meanings :
Mukhtalif = different/ various
bad-e-saba = pleasant breeze in d mrning
baees = reason
qalb=heart, mashghool = intent, Khalis =pure
damsaaz=friends, itihaad = unity, mutasir = impressed
firqah = caste/class, paindaah = lasting
fanaa =destroy
tasavoori udaan =ideal flight
maqbooliyat = acceptance
aafaq = horizon
berooni rokh = different look/color
kawa = crow, siyahi = color of ink
aabroo rizi = loss of respect
dard-e-afzaish = increasing pain
aaftaab-e-noor = sun’s light, fajr = dawn
aafroz –e-chiraag = lamp’s light, adhyaar = stranger
aazordaah = dejected
masla = problem