माह़ी
इस यकता तालुक को देख, आज आवाम में हैं हैरत
तेरी मशाल से ही बंधी हैं सासे, की तू हैं मेरी इबादत
खुश नुमः, इस मंज़र के खुमार में घर्क हैं कुछ इस क़दर यह आँखें
इस आस में, की एक मर्तबह कोई शरारह मुझे दूज़ दीदा नज़र बक्शे, ज़रा तोह झाके
तेरे सुर्ख नूर से हैं रोशन यह वजूद, पूरा जहाँ हैं इस बात का गवाह
खुश नुमः तेरे रक्स में जलन ही नहीं, की इस रोग को न दुआ लगी, न दवाः
ज़रीन जुल्फों के बोसे को तरसती हैं मेरी खुश्क काया
इस आपिश के इख्तियार में ज़र्रे ज़र्रे पे छाया बेखुदी का साया
जीनत–e-हया को कभी कर निसार, सरगोशी करती हो आहिस्ते से
कभी गैज़ की देहेक्ति शुआ-एन बरसाती हो गरज के
कुदरत की नायाब करामात, खुदा का हो तुम करम
फिर चाहे कोई मुझे काफ़िर कहे या तेरी ज़र्द बाहों को मेरा भरम
इस मुक़द्दस इतिहाद के खुमार में तहलील होके तुझे देखता जाता हूँ
जलन को महसूस किये बगैर, लम्हा लम्हा मैं जलता ही जाता हूँ
वाइज़ कहते हैं मुझसे यह इश्क नहीं हैं
संनात्ता हैं जिसका अंजाम, यह हैं वो आग
कोई उन्हें बताये, की हमने जल के देखा हैं
और ज़माने से सोयी यह बेनूर आँखें आज गयी हैं जग
डरता हूँ की जाने कब व्हो लमाह आ जाये
की मैं रख और तू धुआं बन उड़ जाए
इस आलेदः को ना मेरी रूह शे पायेगी
इन्श-अ-अल्लाह, तुझसे पहले मुझे ही मौत आएगी
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1 comment:
Gr8 stuff SSS.
Regards
Rishi Raj Singh
http://hrdelight.blogspot.com
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