Saturday, June 12, 2010
मेरा नाम छोटू नहीं है!
तेज़ आवाज़ में कहता हैं "ए छोटू! ज़रा दो चाय लाना"
मेरा नाम छोटू है, ये तुम्हे किसने कहा, पहले ये बताना
पिछले दस सालो से मै बबलू था, फिर शहर हुआ आना
कद तो तब कम ही था तोह सब ने शुरू कर दिया छोटू बुलाना
चाय की दुकान बना नया घर और चाय बनी मेरा पहला प्यार
मालिक ने किया छोटू बुलाना और बबलू बोल बोल मैं गया हार
"ए छोटू! तीन चाय टेबल चार पर, एकदम कड़क, ज़ोरदार"
चाय लेकर जाओ, तोह कस्टमर कहे "छोटू, कुछ खाने को भी ला यार"
"छोटू नहीं! बबलू! -बोलना चाहिए था पर बन के रहा ये एक काल्पनिक साज़
और "हाऊ सर, अभी हाज़िर है" बोली मेरी आदत से मजबूर आवाज़
शायद इसी नाम से जानते हैं मुझे अब सभी लोग पास और दूर दराज़
पांच पांच का हो गया हैं कद, पर लोग न आयेंगे बाज़
अब ठान लिया हैं की छोटू सुन कर भी अनसुना करूंगा
बबलू मेरी पहचान हैं, न खुद भूलूंगा न भूलने दूंगा
दुबारा छोटू कहा तोह...... "ए छोटू! दो चाय और टेबल तीन तोह पोछना"
"हाऊ सर, अभी हाज़िर हैं" -मेरी आदत ने फट से शुरू किया बोलना...
सुचिता
Friday, June 11, 2010
Of Two Worlds
A few minutes when the rains and sun graced the same place
When unanswered questions and naked truth came face to face
The eyes do the talking and ask the mouth to stay mum
But instead, to camouflage the truth, the mouth chooses to hum
The order of the conversation is almost always the same
Contact, awe, longing, questions, anger, complacence and no one to blame
Poised two feet above the ground, with a tinted window wall that lowers only for exchange
To ensure the coolness of her temporary abode remains intact, doesn’t change
She wears sunglasses, a crisp white dress and she’s so pretty and so fair
Just like the poem I had learnt before leaving school for selling tea here
And then appears a creamy hand with a ruby ring and an empty glass that once had tea
The younger ones rush to service but I stay put coz a sense of shame engulfs me
What would she think of my soiled clothes, my dark skin, and my mangled hair
What if she shuns me coz I’m spoiling her breathing air
She then removes her shades and surprisingly looks at me for a second and then more
No blinking is the name of the game and she can see the questions soar
I search deeper but her eyes are starkly speechless
On the extent of nakedness behind every beautiful dress
Exchange done, the window rolls up and the car speeds away leaving a storm of dust
That soils my clothes, my little world in which I shall live, die and meanwhile rust
Why I was born in the black and white world where the darkness seldom fades
And there are those who know red from yellow, the bright world where people wear shades
Though I’m not convinced, ma says –It’s God’s plan and to his tune, we’re all dancers
And here comes another big car at our highway tea shop and begins yet another futile search for my answers.
Suchita ....the one inside the car..on behalf of the one who wasn't...
Wednesday, February 10, 2010
'Maahi' ....is the love story of the wood and the fire...The wood burns to see the fire come alive and engage in a dance that'll last only as long as them...He's happy to see it light up even as he burns..only an end...in ashes and smoke..can separate them....
Following is the 'Hindi' version of 'Maahi' for all those who had problems reading 'Mukhtalif'
Below this, is the 'Urdu' version of 'Maahi' :)
माही
ऐसा रिश्ता है ये, कि दुनिया भी है हैरान
तेरी लपटो मे ही बसी है जाने क्यो मेरी जान
तेरे रौशन होने से ही खिल उठती है ये आऩखे
के कभी तेरी एक चिऩ्गारी तुझसे अलग होकर मेरी ओर झाके
तेरे नूर से ही है मेरा वजूद कि मुझे देख पाते है लोग
तेरे नाच से मै जलता ही नही, कुछ इस कदर है इस इष्क का रोग
सुनहरी ज़ुलफो को छूने को तरसता है, ये मन, ये प्यासी काया
इस जुनून का असर है ऐसा, कि दिल पर छाया है तेरा ही साया
कभी शरमाये हुए धीरे से बात करती हो मुझसे
कभी गुस्से की तेज़ गरम लपते बरसाती हो मुझपे
पर तेरे इष्क मे खोया मै तुझे देखता ही जाता हू
जलने के एहसास को महसूस किये बगैर मै जलता ही जाता हू
वो कहते है मुझसे कि ये इष्क नही है
सन्नाटा है जिसका अन्त, ये है वो आग
कोई उन्हे बताए कि हमने जल के देखा है
और बरसो की नीन्द आज खुली है, के आन्खे गयी है जाग
डरता हू के जाने कब वो पल आ जाये
की मै राख़ और तू धुआ बन उङ जाये
उस जुदाई को मेरी रूह ना सह पाएगी
इऩशाल्लाह तुझसे पहले मुझे ही मौत आएगी
इस यकता तालुक को देख, आज आवाम में हैं हैरत
तेरी मशाल से ही बंधी हैं सासे, की तू हैं मेरी इबादत
खुश नुमः, इस मंज़र के खुमार में घर्क हैं कुछ इस क़दर यह आँखें
इस आस में, की एक मर्तबह कोई शरारह मुझे दूज़ दीदा नज़र बक्शे, ज़रा तोह झाके
तेरे सुर्ख नूर से हैं रोशन यह वजूद, पूरा जहाँ हैं इस बात का गवाह
खुश नुमः तेरे रक्स में जलन ही नहीं, की इस रोग को न दुआ लगी, न दवाः
ज़रीन जुल्फों के बोसे को तरसती हैं मेरी खुश्क काया
इस आपिश के इख्तियार में ज़र्रे ज़र्रे पे छाया बेखुदी का साया
जीनत–e-हया को कभी कर निसार, सरगोशी करती हो आहिस्ते से
कभी गैज़ की देहेक्ति शुआ-एन बरसाती हो गरज के
कुदरत की नायाब करामात, खुदा का हो तुम करम
फिर चाहे कोई मुझे काफ़िर कहे या तेरी ज़र्द बाहों को मेरा भरम
इस मुक़द्दस इतिहाद के खुमार में तहलील होके तुझे देखता जाता हूँ
जलन को महसूस किये बगैर, लम्हा लम्हा मैं जलता ही जाता हूँ
वाइज़ कहते हैं मुझसे यह इश्क नहीं हैं
संनात्ता हैं जिसका अंजाम, यह हैं वो आग
कोई उन्हें बताये, की हमने जल के देखा हैं
और ज़माने से सोयी यह बेनूर आँखें आज गयी हैं जग
डरता हूँ की जाने कब व्हो लमाह आ जाये
की मैं रख और तू धुआं बन उड़ जाए
इस आलेदः को ना मेरी रूह शे पायेगी
इन्श-अ-अल्लाह, तुझसे पहले मुझे ही मौत आएगी
Monday, February 1, 2010
मुख्तलिफ
आज बद-इ-सबा ने मुह है मोड़ा‚ बाग़बान भी हुआ है बेगाना
बाइस जब पूछा मैने‚ तो कहता है की आलम का फरमान था मुझे भी निभाना
कल्ब की हर मशघूल थी ख़ालिस, तमऩना-इ-उड़ान जागी थी एक बार फिर
दम-साज़ थे सभी, इतिहाद कुछ ऐसा था कि खुदा भी था मुतासिर
पर फिरक़ाह फी बरपी एक ऐसी पाइऩदाह चिऩगारी
फना हुई मोहब्बत, किसी भी गैर की मौजूदगी बनी भारी
तसव्वुरी उड़ान की चाह मे, कभी तन्ग, कभी बाघी, कभी हुआ लाचार
पर मक्बूलियत ही है अब मुकद्दऱ, जब की लिहाज़ की हर सीमा हुई है पार
काबिल-ए-कबूल ना था दुनिया-ए-दस्तूर
ऱग पर था मुझे नाज़, रव्वैये मे था गुरूर
आफाक तक उड़ान की रखी थी ख्वाइश
पर बेरूनी रोख के नाम पे खूब हुई नुमाइश
किसी ने कावा कहा, किसी ने सियाही
मेरी बोली, मेरी उड़ान पर हर तरह से रोक लगाई
आबरू रिज़ी की शर्मिन्दगी का एहसास हुआ कुछ ऐसा गहरा
दर्द-ए-अफज़ाइश था इतना कि आइना भी पहचान ना पाया मेरा चहरा
आफताब-ए-नूर से आती थी शरम, फजर् का रहता मुझे इन्तज़ार
अफरोज़-ए-चिराग की पनाह मे छुपा, के अब वजूद भी था अध्यार
जाने क्यो उस चराग से कल्ब को थी एक अजीब सी चाह
शायद उसी के नूर से दमक उठे ये बेनूर आज़ूरदाह
इस बेगाने शहर की बेगान्गी अब बन गयी है मसला
के अब जन्नत और जहन्नुम मे कम हो रहा है फासला
आज बद-इ-सबा ने मुह है मोड़ा‚ बाघबान भी हुआ है बेगाना
बाइस जब पूछा मैने‚ तो कहता है की आलम का फरमान था मुझे भी निभाना
Word Meanings :
Mukhtalif = different/ various
bad-e-saba = pleasant breeze in d mrning
baees = reason
qalb=heart, mashghool = intent, Khalis =pure
damsaaz=friends, itihaad = unity, mutasir = impressed
firqah = caste/class, paindaah = lasting
fanaa =destroy
tasavoori udaan =ideal flight
maqbooliyat = acceptance
aafaq = horizon
berooni rokh = different look/color
kawa = crow, siyahi = color of ink
aabroo rizi = loss of respect
dard-e-afzaish = increasing pain
aaftaab-e-noor = sun’s light, fajr = dawn
aafroz –e-chiraag = lamp’s light, adhyaar = stranger
aazordaah = dejected
masla = problem